Russia Inhabitants: अभी दुनिया की कुल आबादी 7 अरब 95 करोड़ 40 लाख है. कुछ ही महीने में ये 8 अरब तक पहुंच सकती है. दुनिया की आबादी कितनी तेजी से बढ़ रही है इस बात का अंदाजा आप ऐसे लगा सकते हैं कि दुनिया की आबादी 1 अरब होने में लाखों साल लग गए थे. लेकिन 1 अरब से 7 अरब तक पहुंचने में सिर्फ करीब 200 साल ही लगे. जो बेहद चिंता का विषय है. लेकिन दुनिया में एक देश ऐसा भी है जो अपने नागरिकों को ज्यादा से ज्यादा बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है. ऐसा करने वालों को नकद ईनाम की घोषणा कर रहा है. ये देश है – रूस (Vladimir Putin).
पुतिन ने रूसी महिलाओं को दिया ये खास ऑफर
रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) ने अपने देश की महिलाओं को 10 बच्चे पैदा करने का टास्क दिया है. उन्होंने इसके लिए नकद इनाम का भी ऐलान किया है और ऐसा करने वाली महिलाओं को 10 लाख रुबल यानी भारतीय करंसी के मुताबिक करीब 13 लाख रुपए दिए जाएंगे. इसके साथ ही उन्हे ‘मदर हीरोइन’ नाम का अवॉर्ड भी दिया जाएगा. इस स्कीम के अनुसार महिलाओं को एक साथ पूरी रकम दी जाएगी. यानी ये रकम 10वें बच्चे के एक साल का हो जाने पर यानी उसके पहले जन्मदिन पर मां के अकाउंट में ट्रांसफर की जाएगी. यही नहीं मां किसी हमले में या हादसे में अपना बच्चा खो भी देती है तो भी उसे पूरे 13 लाख रुपए दिए जाएंगे.
सवाल ये है कि रूस (Russia) ऐसा क्यों कर रहा है. दरअसल रूस भले ही क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा देश है, लेकिन वहां की आबादी कई दशकों से लगातार घट रही है. 2021 के बाद से, कोरोना महामारी के दौरान रूस की जनसंख्या में गिरावट की दर लगभग दोगुनी हो गई है. 2022 की शुरुआत में रूस की जनसंख्या में लगभग चार लाख की गिरावट आई है. वर्ष 2021 में आबादी घटने की जो दर थी, वर्ष 2022 मे उससे तीन गुनी तेज रफ्तार से आबादी घटी है. ये पिछले 30 वर्षों में आबादी घटने की सबसे तेज दर है.
अगर यही रफ्तार बनी रही तो 2050 तक रूस की आबादी घट कर 13 से 14 करोड़ के बीच ही रह जाएगी. इसमें भी बुजुर्गों की संख्या ज्यादा होगी. कहा जा रहा है कि यूक्रेन युद्ध में रूस (Russia) अपने 50 हजार से अधिक लोगों को खो चुका है. पिछले कई सालों से रूस अपनी जनसंख्या को बढ़ाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन वो असफल ही रहा है. जनसंख्या बढ़ाने के लिए रूस जो स्कीम लेकर आया है, वो कई नई स्कीम नहीं है. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान बड़े पैमाने पर रूस ने अपने लोगों को जंग में खो दिया था.
पहले विश्व युद्ध में मारे गए थे ढ़ाई करोड़ रूसी
दूसरे विश्वयुद्ध से पहले वर्ष 1941 में रूस की आबादी करीब 19.5 करोड़ थी, 1946 में ये घट तक 17.6 करोड़ रह गई थी. यानी पांच सालों में रूस की आबादी करीब ढाई करोड़ तक कम हो गई थी. उस दौरान जो लोग मारे गए थे. उनकी उम्र 17 से 55 वर्ष के बीच थी और इनमें भी ज्यादातर पुरुष थे. इसका सीधा असर रूस की आबादी पर भी पड़ा. 1959 में हुई जनगणना के अनुसार रूस में पुरुषों की तुलना में महिलाओं की संख्या करीब करीब 1 करोड़ 80 लाख ज्यादा थीं.
तब पहली बार ये योजना 1944 में सोवियत नेता जोसेफ स्टालिन ने लागू की थी. लेकिन 1991 में शीत युद्ध के बाद जब सोवियत संघ का पतन हुआ तो इस योजना को बंद कर दिया गया और अब दोबारा ये स्कीम पुतिन ने लॉन्च की (गई) है .
क्षेत्रफल के हिसाब से दुनिया के सबसे बड़े देश रूस (Vladimir Putin) की आबादी करीब साढ़े 14 करोड़ है. यानी पाकिस्तान, बांग्लादेश जैसे देशों से भी कम. रूस की सीमाएं चीन, मध्य एशिया के देशों के साथ पूर्वी यूरोप के कई देशों से जुड़ती हैं. यूरोप के ये देश एक एक कर रूस के दुश्मन NATO का हिस्सा बन रहे हैं. यानी रूस को इतनी बड़ी सीमाओं की सुरक्षा के लिए ज्यादा लोग चाहिए. सीमावर्ती इलाकों में घनी बस्तियां चाहिए. लेकिन अगर आबादी ऐसे ही घटती रही तो फिर रूस के लिए ये बड़ी चुनौती बन जाएगी और उसकी सुरक्षा को खतरा पैदा होने की आशंका भी बढ़ जाएगी. इसीलिए पुतिन देश की आबादी को बढ़ाना चाहते हैं और वो ज्यादा बच्चा पैदा करने को राष्ट्रवाद से जोड़ रहे हैं.
घटती आबादी की ये समस्या सिर्फ़ रूस (Russia) की नहीं हैं. जापान, अमेरिका, सिंगापुर, साउथ कोरिया और चीन जैसे देश भी इससे जूझ रहे हैं. चीन में बच्चा पैदा करने की दर पिछले 40 सालों में सबसे कम है और वहां की महिलाओं का फर्टिलिटी रेट घटकर 1.7 रह गया है. अमेरिका का भी यही हाल है. जबकि सिंगापुर और हॉन्गकांग में महिलाओं के बच्चा पैदा करने की दर सिर्फ़ 1.1 है. स्पेन और इटली में ये दर 1.3 रह गई है. यहां की एक महिला औसत इतने बच्चे पैदा करती है. Nationwide Household Well being Survey के अनुसार, भारत में भी प्रजनन दर 2.2 से घटकर 2.0 रह गई है और पहली बार ये दर 2.1 यानी रिप्लेसमेंट लेवल के नीचे जा चुकी है.
दुनिया के कई देशों में घटती जा रही प्रजनन दर
रिप्लेसमेंट लेवल वो दर होती है. जो किसी देश की घटने वाली आबादी को नई आबादी से रिप्लेस करती है. अगर किसी देश की प्रजनन दर इसके नीचे चली जाए तो फिर उस देश की आबादी की ग्रोथ निगेटिव हो जाती है और धीरे धीरे आबादी घटने लगती है. आज दुनिया के ज्यादातर देशों में फर्टिलिटी रेट इस रिप्लेसमेंट लेवल के नीचे जा चुका है.
इस वजह से 21 वीं सदी के अंत तक भारत, चीन और जापान जैसे देशों की आबादी में तेज गिरावट भी देखने को मिल सकती है. 2100 तक जापान की आबादी में सबसे ज्यादा करीब 60 प्रतिशत की गिरावट आएगी. जबकि चीन की आबादी में भी करीब 52% की गिरावट हो सकती है और चीन की आबादी घटकर करीब 68.4 करोड़ रह जाएगी..भारत की बात करें तो 2100 तक देश की आबादी 34 प्रतिशत घट जाएगी. यूएन के मुताबिक, 2020 में भारत की जनसंख्या 138 करोड़ थी जो 2100 में घटकर 91 करोड़ हो जाएगी.
आबादी घटने से बुजुर्गों की संख्या भी बढ़ेगी. यानी आबादी में युवा कम होंगे और बुजुर्ग ज्यादा होंगे. जैसे आज भारत एक जवान देश है और देश की कुल आबादी में आधे से ज्यादा लोगों की उम्र 40 से कम है. वर्ष 2010 में भारत की औसत उम्र 25 साल थी. वहीं इसकी तुलना में चीन की 35, अमेरिका की 37, जर्मनी की 44 और जापान की औसत उम्र 45 थी. किसी भी देश की युवा आबादी को ‘जनसांख्यिकी लाभांश’ भी कहा जाता है क्योंकि ये युवा ऊर्जा के साथ ज्यादा काम कर सकते हैं और देश की अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने में अहम योगदान देते हैं.
बुजुर्गों की संख्या बढ़ती चली जाएगी
अमेरिका के पॉपुलेशन रेफरेंस ब्यूरो की एक स्टडी के अनुसार भारत में वर्ष 2050 तक 65 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों की संख्या तीन गुना तक बढ़ जाएगी. जबकि 15 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की संख्या 20 फीसदी कम हो जाएगी. भारत के सांख्यिकी मंत्रालय द्वारा 2017 में जो रिपोर्ट जारी की गई थी. उसके अनुसार देश में 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों की संख्या में पिछले दस वर्षों में 35.5 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है. 2001 में देश में बुजुर्गों की संख्या सात करोड़ 60 लाख थी, जो 2011 में बढ़कर 10 करोड़ 30 लाख तक पहुंच गई थी.
ये आंकड़े अपने आप में काफी डरावने हैं. इसीलिए वर्ष 2020 में जी-20 देशों की बैठक में इस मुद्दे पर पहली बार चर्चा भी की गई थी. जी-20 के सदस्य देशों की कुल जी.डी.पी. दुनिया की कुल जी.डी.पी. का 85 प्रतिशत है लेकिन जन्म दर में लगातार आ रही गिरावट इनके लिए खतरा बन चुकी है.
आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2017 में पूरे विश्व में बुजुर्गों की कुल आबादी करीब 1 अरब थी लेकिन 2050 तक ये दोगुनी यानी दो अरब तक पहुंच सकती है. इनमें भी ज्यादातर वो लोग होंगे जिनका कोई बच्चा नहीं होगा या फिर वो सिंगल होंगे. यानी दुनिया में काम करने वाले लोग जिसे वर्क फोर्स भी कहते हैं वो घट जाएंगी, जिससे उत्पादन क्षमता पर बुरा असर पड़ेगा और जीडीपी सिकुड़ने लगेगी. दूसरी तरफ बुजुर्गों की देखभाल की जिम्मेदारी, उनकी पेंशन और इलाज़ का खर्च बढ़ता रहेगा और अकेले रह रहे बुजुर्गों का ध्यान रखने की जिम्मेदारी सरकार की ही होगी. यानी टैक्स से कमाई कम हो जाएगी और खर्च बढ़ने लगेगा. ये स्थिति पूरी दुनिया के लिए बड़ी चुनौती बन सकती है.
घटती आबादी केवल रूस की समस्या नहीं
इसीलिए घटती आबादी से सिर्फ़ रूस (Russia) के राष्ट्रपति पुतिन ही परेशान नहीं हैं. कई दूसरे देशों ने भी प्रजनन दर बढ़ाने के लिए कई तरह की योजनाएं शुरू की हैं. जैसे-
– जैसे दक्षिण कोरिया में बच्चे पैदा करने वालों को चाइल्ड केयर सुविधाओं के साथ कई तरह के इंसेंटिव दिए जाते हैं. इसके अलावा युवाओं को शादी करने और डेट पर जाने के लिए भी प्रोत्साहित किया जाता है.
– सिंगापुर लोगों को बच्चा पैदा करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए कई योजनाएं चलाता है और इन योजनाओं में हर वर्ष करीब 1 बिलियन डॉलर यानी साढ़े 10 हजार करोड़ रुपये खर्च किए जाते हैं. इन योजनाओं में टैक्स में छू और मैटरनिटी/पैटरनिटी लीव जैसी सुविधाएं भी शामिल हैं.
– तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगान भी 2016 में महिलाओं से कम से कम तीन बच्चे पैदा करने की अपील कर चुके हैं.
– जापान में पहला बच्चा पैदा होने पर महिलाओं को करीब एक लाख 36 हज़ार रुपये दिए जाते हैं. जबकि चौथे बच्चे के जन्म पर महिला को इससे दस गुनी राशि यानी लगभग 13 लाख रुपये तक दिए जाते हैं.
दुनिया में बच्चे क्यों नहीं पैदा करना चाह रहे लोग
आपको ये जानकर भी हैरानी होगी कि इन सुविधाओं और योजनाओं के बाद भी पूरी दुनिया में लोगों की बच्चा पैदा करने और शादी करने में रुचि कम हो रही है. खासकर जिन परिवारों में पति और पत्नी दोनों ही वर्किंग हैं, वहां ये स्थिति और भी खराब है. इसकी सबसे बड़ी वजह आज के हालात हैं. आज शिक्षा, स्वास्थ और हाउसिंग जैसी बुनियादी चीज़ें बेहद महंगी हुई हैं. जबकि लोगों की आय उस अनुपात में नहीं बढ़ी है.
इसके अलावा कोरोना जैसी महामारी के बाद लोग अपनी आय और अपने भविष्य को लेकर डरे हुए हैं. इसलिए भी वो बच्चों की जिम्मेदारी उठाने से बच रहे हैं और सिंगल रहना ज्यादा पसंद कर रहे हैं. ये नया ट्रेंड दुनिया के लिए एक नई मुसीबत पैदा कर सकता है.
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Credit : http://zeenews.india.com